Zero जिसे शून्य भी कहाँ जाता हैं एक ऐसी संख्या हैं जिसके बारे में प्रत्येक विद्यार्थी जनता हैं। परंतु क्या आपने कभी चिंतन किया हैं कि इस शून्य का अविष्कार किसने किया और कब किया। शून्य एक ऐसी संख्या हैं जिसके बिना सम्पूर्ण गणित व भौतिक या विज्ञान का हर एक विषय अधूरा हैं।
शून्य के बारे में बहुत पुराना इतिहास हैं कि किसके द्वारा इसकी खोज की गई व गणित के क्षेत्र में शून्य का किस प्रकार से योगदान हैं। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको शून्य जिसे जीरो भी कहाँ जाता हैं उसके अविष्कार के बारे मे जानकारी देंगे। तो समय को व्यर्थ न करते हुए शरू करते हैं आज के इस लिखित कथन को।
Zero का अविष्कार किसने व कब किया?
शून्य के आविष्कार का श्रेय भारतीय विद्वान व गणितज्ञ बह्मगुप्त को दिया जाता हैं। जबकि कुछ लोग शून्य के अविष्कार पीछे आर्यभट्ट को मानते हैं। हालांकि, आर्यभट्ट का गणित के क्षेत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा हैं। पर शून्य का श्रेय केवल ब्रह्मगुप्त को दिया जाता हैं।
शून्य के आविष्कार से विश्व पर क्या प्रभाव पड़ा?
आज वर्तमान समय मे जो हम बड़ी से बड़ी गणना आसानी से कर लेते हैं यह केवल शून्य की बदौलत हैं। क्या आपने कभी सोचा हैं कि अगर शून्य का अविष्कार न होता तो क्या चन्द्रमा की दूरी का आंकलन करना सरल होता।
इसका उत्तर न में होता। परंतु एक जहाँ समूर्ण विश्व नई नई खोजो में लग रहा था। वही भारतवर्ष में बड़े बड़े ज्ञाता जीरो की खोज में लगे थे। आज हम अपने घरों में बैठे जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फ़ोन पर बात करते वो केवल शून्य की वजह से हैं। इसके पीछे कोई तकनीकी उपकरण या अन्य किसी प्रणाली की विशेषता नहीं हैं बल्कि केवल शून्य ही वो संख्या हैं जो 10 नंबरों की गिनती की पूरा करती हैं।
इसके अलावा शून्य के आविष्कार को सबसे उत्त आविष्कारों मे से एक माना जाता हैं। एक जहां विभिन देश अपनी अपनी खोजों के लिए जाने जाते हैं, वही भारतवर्ष भी शून्य की खोज के लिए जाना जाता हैं। किन्तु आश्चर्य की बात यह हैं कि शून्य का आविष्कार को साधारण आविष्कार नहीं था। इसकी चर्चा हमारे एक प्रसिद्ध फिल्मी कलाकार मनोज कुमार ने पूरब ओर पशिम फिल्म मे एक गीत के माध्यम से दर्शायी हैं शून्य एक ऐसी संख्या हैं जिसके किसी भी अन्य संख्या से भाग करने पर उसका जोड़ भी सुनी हो जाता हैं। व किसी भी संख्या मे शून्य जोड़ने से वही संख्या मिलती हैं।
इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि ज़ीरो को किसी भी संख्या मे जितना ज्यादे पीछा लगाएंगे व संख्या उतनी ही बड़ी होती जाएगी।
उद्धरण के तोर पर अगर 1 के आगे हम एक शून्य लगते हैं तो वो 10 बन जाता हैं ओर अगर दो शून्य लगते हैं तो वो 100 बन जाता हैं। ठीक इसी प्रकार से हजार,दस हजार, लाख व करोड़ बनते जाते हैं। शून्य का जितना उपयोग गणित व भोतीक विज्ञान मे हैं, इतना अन्य किसी विषय मे नहीं। इसीलिए शून्य को गणित का उदय माना जाता हैं।
इसके अलावा एक ओर महत्वपूर्ण व गणित का रोचक तथ्य जो गणित से निकलता हैं उसकी खोज भी भारत मे ही हुई थी जिसे हम( .) दशमलों बोलते हैं। जी हा, इन दोनों महत्वपूर्ण गणित की आधार शैली का आविष्कार भारत मे ही हुआ हैं।
डॉ जॉर्ज घेवरघेस जोसेफ की पुस्तक "द क्रेस्ट ऑफ द पीकॉक; नॉन-यूरोपियन रूट्स ऑफ मैथमेटिक्स" के अनुसार, शून्य की अवधारणा पहली बार भारत में 458 ईस्वी के आसपास दिखाई दी। जोसेफ ने सुझाव दिया कि शून्य के लिए संस्कृत शब्द, nya, जो "शून्य" या "खाली" का अर्थ है और विकास के लिए शब्द से लिया गया है, जो "कमी" या "कमी" की ऋग्वेद में पाई गई प्रारंभिक परिभाषा के साथ संयुक्त है। दो परिभाषाओं का व्युत्पन्न nyata है, जो "शून्यता" का एक बौद्ध सिद्धांत है, या किसी के दिमाग को छापों और विचारों से खाली करना है।
Zero के आविष्कार से अध्यन क्षेत्र मे क्या बदलाव आया है?
ज़ीरो के आविष्कार से न केवल अध्यन क्षेत्र मे बदलाव आया है बल्कि सम्पूर्ण जगत मे क्रांति का संचार हुआ है।
आज जीतने भी बड़े से बड़े साइअन्टिफिक परीक्षण से लेकर मिसाइल टेस्टिंग होती हैं उन सभी की गणना करने के लिए शून्य की अहम भूमिका रहती हैं। अथार्त हम कह सकते हैं कि शून्य की खोज के बिना कोई भी कार्य करना असंभव हैं। गणित व विज्ञान के क्षेत्र में इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करना एक बहुत बड़ी खोज हैं।
अतः आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हमने जाना कि जीरो जिसे शून्य कहा जाता हैं उसकी खोज किसके द्वारा हुई। व कौन से सन में हुई। बहुत से लोगो मे यह धारणा चलती आ रही हैं कि शून्य की खोज आर्यभट्ट के द्वारा हुई। जबकि शून्य के खोजकर्ता ब्रह्मगुप्त हैं जिन्हे इस अदभुत खोज के लिए अलग दर्जे से याद किया जाता हैं। एक जहाँ विश्व के अन्य देशों ने अलग अलग आविष्कार किये वही भारत ने शून्य देकर अपने देश के गौरव को समूचे विश्व मे सबसे भिन्न रूप में दर्शाया हैं।